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पश्चिमी अफ्रीका में अस्थिरता, माली में संकट
दुनियाभर में राजनीतिक तौर पर अस्थिर देशों की लंबी सूची है. लेकिन, पश्चिमी अफ्रीकी देशों में राजनीतिक अस्थिरता और गृहयुद्ध का लंबा इतिहास रहा है. कभी चरमपंथी गुटों की अगुवाई में सशस्त्र विद्रोह हुआ, तो कभी सेना द्वारा तख्तापलट. हालांकि, यही एकमात्र वजह नहीं है. पश्चिमी अफ्रीका के देशों में जनजातीय आबादी के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों की बहुलता है. इन पर अधिकार को लेकर बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष होता रहता है. इसी कड.ी में माली में चरमपंथी गुटों के हमले के बाद सैन्य तख्तापलट को अंजाम दिया गया. इसके बाद देश में आपातकाल लगा दिया गया. माली के मद्देनजर अफ्रीकी देशों में राजनीतिक अस्थिरता पर आज का नॉलेज..
1960 में माली को फ्रांस से स्वतंत्रता मिली. मोडिबो कीटा देश के पहले राष्ट्रपति बने.
1968 में तख्तापलट के बाद कीटा को जेल में डाल दिया गया और 1977 में जेल में ही उनकी मौत हो गयी.
1992 में चुनाव के बाद पहली लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ.
2012 में 21 मार्च को माली सेना ने तख्तापलट किया.
नॉलेज डेस्क
आज दुनिया के कई देश सत्ता संघर्ष और गृहयुद्ध की आग की लपटों से घिरे हैं. चाहे वह सालभर से संघर्षरत सीरिया हो या पश्चिमी अफ्रीकी देश माली. माली वर्ष 1960 से पहले फ्रांस का एक उपनिवेश था. फ्रांस से आजादी के बाद अभी तक के इतिहास में वह गंभीर राजनीतिक संकट में उलझा रहा है. इस संकट से निकलने के लिए माली सरकार को फ्रांस से सैन्य हस्तक्षेप की मदद मांगनी पड.ी और बगावत के इन्हीं खतरों से निपटने के लिए फ्रांसीसी सेना आज माली में सैकड.ों की संख्या में तैनात हैं.
समस्या की जड.
माली की सीमा बुर्किना फासो, नाइजीरिया, नाइजर, अल्जीरिया, मॉरीटेनिया और गिनी जैसे अफ्रीकी देशों से सटी है. देश की 90 फीसदी आबादी मुसलिम है, जबकि पांच फीसदी ईसाई और पांच फीसदी स्थानीय जातियां हैं. साल भर पहले टुआरेग समुदाय और कट्टरपंथी विद्रोहियों ने जोरदार संघर्ष शुरू किया. अप्रैल, 2012 में अल-कायदा से जुडे. विद्रोहियों ने देश के उत्तरी हिस्से के बडे. भू-भाग पर कब्जा कर लिया. इसके बाद सेना ने सरकार पर विद्रोहियों के प्रति नरम रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले ली.
हिंसक गुटों ने तख्तापलट का फायदा उठाया और ऐतिहासिक शहर टिंबकटू पर कब्जा कर लिया. दो और शहरों को विद्रोहियों ने अपने कब्जे में कर लिया. इसके बाद टुआरेग विद्रोही अलग-थलग पड. गये और सशस्त्र विद्रोह पूरी तरह अल कायदा से जुडे. संगठनों के नियंत्रण में आ गया. कट्टरपंथियों ने टिंबकटू की ऐतिहासिक धरोहरों को तोड. डाला. उन्हें इसलाम के विरुद्ध बताया गया. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने नियंत्रण वाले इलाके में शरिया कानून लागू कर दिया.
सोमालिया बनता माली
सेना द्वारा तख्तापलट के पहले तक माली को पश्चिमी अफ्रीकी देशों के लिए लोकतंत्र का आदर्श मॉडल माना जाता था. लेकिन, अब ऐसा कहा जा रहा है कि माली दूसरा सूडान और अफगानिस्तान बनने की कगार पर है. इन देशों में चरमपंथी देश की सुरक्षा के लिए लगातार चुनौती बने हुए हैं. हालांकि, सेना और संसद के बीच समझौते के बाद दक्षिणी माली में नागरिक सरकार की वापसी हुई, लेकिन पूरे देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल अब भी कायम है.
फ्रांस और इकोवास का हस्तक्षेप
फ्रांस का उपनिवेश रह चुके माली में करीब 6,000 फ्रांसीसी नागरिक हैं. माली सरकार द्वारा फ्रांस से मदद की अपील के बाद कट्टरपंथी चरमपंथियों के खिलाफ जोरदार सैन्य अभियान शुरू हुआ और इसके बाद पूरे देश में आपातकाल भी लागू कर दिया गया. लगभग सालभर से कट्टरपंथियों के हमले झेल रहे माली में दखल देने वाला फ्रांस पहला पश्चिमी देशहै. वहीं, पश्चिमी अफ्रीकी देशों के संगठन इकोवास ने भी माली के विद्रोहियों के खिलाफ फ्रांसीसी और स्थानीय सेना की कार्रवाई का स्वागत किया. फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांकोइस ओलांद के मुताबिक उनकी सैन्य कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत आती है और संयुक्त राष्ट्र भी माली में अफ्रीकी सेनाएं भेजने की अनुमति दे चुका है. इस बीच अमेरिका भी माली की सेना को खुफिया और साजो-सामान संबंधी सहायता देने पर विचार कर रहा है. माली में फ्रांस की कार्रवाई के बाद विद्रोहियों की स्थिति पहले से कमजोर हुई है, लेकिन इसके बावजूद माली के लिए आगे चुनौतियां आसान नहीं होंगी. लोकतांत्रिक सरकार, सेना और विद्रोहियों की तिकड.ी में फंसा माली पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के सामने एक चुनौती की तरह है.
आज दुनिया के कई देश सत्ता संघर्ष और गृहयुद्ध की आग की लपटों से घिरे हैं. चाहे वह सालभर से संघर्षरत सीरिया हो या पश्चिमी अफ्रीकी देश माली. माली वर्ष 1960 से पहले फ्रांस का एक उपनिवेश था. फ्रांस से आजादी के बाद अभी तक के इतिहास में वह गंभीर राजनीतिक संकट में उलझा रहा है. इस संकट से निकलने के लिए माली सरकार को फ्रांस से सैन्य हस्तक्षेप की मदद मांगनी पड.ी और बगावत के इन्हीं खतरों से निपटने के लिए फ्रांसीसी सेना आज माली में सैकड.ों की संख्या में तैनात हैं.
समस्या की जड.
माली की सीमा बुर्किना फासो, नाइजीरिया, नाइजर, अल्जीरिया, मॉरीटेनिया और गिनी जैसे अफ्रीकी देशों से सटी है. देश की 90 फीसदी आबादी मुसलिम है, जबकि पांच फीसदी ईसाई और पांच फीसदी स्थानीय जातियां हैं. साल भर पहले टुआरेग समुदाय और कट्टरपंथी विद्रोहियों ने जोरदार संघर्ष शुरू किया. अप्रैल, 2012 में अल-कायदा से जुडे. विद्रोहियों ने देश के उत्तरी हिस्से के बडे. भू-भाग पर कब्जा कर लिया. इसके बाद सेना ने सरकार पर विद्रोहियों के प्रति नरम रुख अपनाने का आरोप लगाते हुए सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ले ली.
हिंसक गुटों ने तख्तापलट का फायदा उठाया और ऐतिहासिक शहर टिंबकटू पर कब्जा कर लिया. दो और शहरों को विद्रोहियों ने अपने कब्जे में कर लिया. इसके बाद टुआरेग विद्रोही अलग-थलग पड. गये और सशस्त्र विद्रोह पूरी तरह अल कायदा से जुडे. संगठनों के नियंत्रण में आ गया. कट्टरपंथियों ने टिंबकटू की ऐतिहासिक धरोहरों को तोड. डाला. उन्हें इसलाम के विरुद्ध बताया गया. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने नियंत्रण वाले इलाके में शरिया कानून लागू कर दिया.
सोमालिया बनता माली
सेना द्वारा तख्तापलट के पहले तक माली को पश्चिमी अफ्रीकी देशों के लिए लोकतंत्र का आदर्श मॉडल माना जाता था. लेकिन, अब ऐसा कहा जा रहा है कि माली दूसरा सूडान और अफगानिस्तान बनने की कगार पर है. इन देशों में चरमपंथी देश की सुरक्षा के लिए लगातार चुनौती बने हुए हैं. हालांकि, सेना और संसद के बीच समझौते के बाद दक्षिणी माली में नागरिक सरकार की वापसी हुई, लेकिन पूरे देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल अब भी कायम है.
फ्रांस और इकोवास का हस्तक्षेप
फ्रांस का उपनिवेश रह चुके माली में करीब 6,000 फ्रांसीसी नागरिक हैं. माली सरकार द्वारा फ्रांस से मदद की अपील के बाद कट्टरपंथी चरमपंथियों के खिलाफ जोरदार सैन्य अभियान शुरू हुआ और इसके बाद पूरे देश में आपातकाल भी लागू कर दिया गया. लगभग सालभर से कट्टरपंथियों के हमले झेल रहे माली में दखल देने वाला फ्रांस पहला पश्चिमी देशहै. वहीं, पश्चिमी अफ्रीकी देशों के संगठन इकोवास ने भी माली के विद्रोहियों के खिलाफ फ्रांसीसी और स्थानीय सेना की कार्रवाई का स्वागत किया. फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांकोइस ओलांद के मुताबिक उनकी सैन्य कार्रवाई संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत आती है और संयुक्त राष्ट्र भी माली में अफ्रीकी सेनाएं भेजने की अनुमति दे चुका है. इस बीच अमेरिका भी माली की सेना को खुफिया और साजो-सामान संबंधी सहायता देने पर विचार कर रहा है. माली में फ्रांस की कार्रवाई के बाद विद्रोहियों की स्थिति पहले से कमजोर हुई है, लेकिन इसके बावजूद माली के लिए आगे चुनौतियां आसान नहीं होंगी. लोकतांत्रिक सरकार, सेना और विद्रोहियों की तिकड.ी में फंसा माली पूरे अफ्रीकी महाद्वीप के सामने एक चुनौती की तरह है.
माली : कंट्री प्रोफाइल
नाम : द रिपब्लिक ऑफ माली
अंतरिम राष्ट्रपति : दियोंकोउंडा ट्राओर
जनसंख्या : 1.58 करोड.
राजधानी : बामाको
भाषाएं : फ्रेंच, बाम्बरा, बेरबेर, अरबी.
धर्म : इसलाम, जनजातीय समूहों के विभित्र धर्म.
प्रमुख विद्रोही समूह : टिंबकटू में इसलामी समूह अंसार दिने, पश्चिम माली में मूवमेंट फॉर यूनिटी एंड जिहाद मुजाओ, नेशनल मूवमेंट फॉर द लिबरेशन ऑफ अजावाड
नाम : द रिपब्लिक ऑफ माली
अंतरिम राष्ट्रपति : दियोंकोउंडा ट्राओर
जनसंख्या : 1.58 करोड.
राजधानी : बामाको
भाषाएं : फ्रेंच, बाम्बरा, बेरबेर, अरबी.
धर्म : इसलाम, जनजातीय समूहों के विभित्र धर्म.
प्रमुख विद्रोही समूह : टिंबकटू में इसलामी समूह अंसार दिने, पश्चिम माली में मूवमेंट फॉर यूनिटी एंड जिहाद मुजाओ, नेशनल मूवमेंट फॉर द लिबरेशन ऑफ अजावाड
अफ्रीकी देशों में अस्थिरता का रहा है इतिहास
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पश्चिमी अफ्रीकी देशों को आमतौर पर राजनीतिक अस्थिरता के लिए नहीं जाना जाता है, लेकिन इस क्षेत्र में होने वाली विभित्र घटनाओं ने पूरे क्षेत्र में राजनीतिक उथल-पुथल मचा दिया है. इसका सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि आर्थिक असर भी इन देशों में देखने को मिल रहा है.
आइवरी कोस्ट आइवरी कोस्ट कई दशकों तक गृह युद्ध को झेलता रहा. पिछले साल गृहयुद्ध की समस्या थोड.ी शांत ही हुई थी कि एकबार फिर राजनीतिक अस्थिरता ने उसे जकड. लिया. राष्ट्रपति चुनावों के दौरान विपक्षी प्रत्याशी अल्साने ओउट्टारा ने सत्तारूढ. राष्ट्रपति लॉरेंट ग्बाग्बो को हरा दिया. लेकिन ग्बाग्बो ने इस हार को स्वीकार करने की जगह पद छोड.ने से इनकार कर दिया. इसके बाद दोनों नेताओं के सर्मथकों के बीच हुए संघर्ष में लगभग 300 लोगों की मौत हो गयी. नाइजीरिया नाइजीरिया में हिंसक विद्रोहों और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार को लेकर होने वाले संघर्षों का लंबा इतिहास रहा है. नाइजीरिया अफ्रीका का सबसे अधिक घनी आबादी वाला देश माना जाता है. इस देश की दो प्रमुख राजनीतिक समस्याएं हैं. एक नाइजर डेल्टा क्षेत्र में, जहां तेल का सबसे अधिक भंडार है. दूसरी सबसे बड.ी समस्या यह है कि यहां के उत्तरी हिस्से में जनजातीय और मुसलिम आबादी अधिक है, तो दक्षिण नाइजरिया ईसाई बहुल है. यहां भी चरमपंथी संगठनों और सरकार के बीच अकसर संघर्ष होता रहता है. मुख्य विद्रोही संगठन बोकोहराम है, जो अफगानिस्तान के तालिबान मॉडल को फॉलो करता है. केन्या केन्या में 2007-08 में चुनाव हुआ. लेकिन, चुनाव के बाद जनजातीय समूहों की ओर से व्यापक हिंसा हुई. इस हिंसा के बाद केन्या में गृहयुद्ध तक की नौबत आ गयी. इसके अलावा, यह अफ्रीकी देश कई दशकों तक तानाशाही शासन के भी अधीन रहा है. दरअसल, केन्या विभित्र जनजातीय समूहों का देश है और यहां अक्सर सत्ता पर पकड. को लेकर संघर्ष चलता रहता है. रवांडा यह पूर्वी और मध्य अफ्रीका के बीच स्थित जनजातीय बहुल देशहै. रवांडा अपने जातीय हिंसा की वजह से शुरू से अस्थिर देश के तौर पर जाना जाता है. 1994 में रवांडा नरसंहार में 100 दिनों में लगभग आठ lakh लोगों की हत्या हुई थी. हुत्तू और तुत्सू इन दोनों जातीय समूह के बीच अकसर हिंसक संघर्ष रवांडा के लिए अस्थिरता की बड.ी वजह रही है.
http://en.wikipedia.org/wiki/
चाड साल 2008 में विद्रोही गुटों ने तख्तापलट की कोशिश की थी, लेकिन उसमें सफलता नहीं, लेकिन यह मध्य अफ्रीकी देश फिलहाल गृहयुद्ध के संकट से घिरा है. गिनी बिसुआ यह पश्चिमी अफ्रीकी देश 1973 में पुर्तगाल से आजाद हुआ था. लेकिन, उसके बाद से ही यह सैन्यतख्ता पलट का शिकार रहा है. 2003 में हुए तख्तापलट के बाद प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके सैन्य शासन लागू किया गया. 2005 में राष्ट्रपति चुनाव हुआ, लेकिन उसके बाद 2008 में राष्ट्रपति आवास पर विद्रोहियों ने हमला कर दिया, जिसमें राष्ट्रपति बर्नाडो वियरा बाल-बाल बच गये. हालांकि, 2009 में उनकी हत्या कर दी गयी. सोमालिया वर्ष 1960 से पहले सोमालिया, ग्रेट ब्रिटेन और इटली दोनों का उपनिवेश था. यह देश गृहयुद्ध के संकट से ग्रसित है और इसका उत्तरी हिस्सा पूरी तरह तनाव ग्रस्त क्षेत्र माना जाता है. उत्तरी सोमालिया को सोमालियालैंड के नाम से भी जाना जाता है. सूडान सूडान 1956 तक ग्रेट ब्रिटेन और मिस्र के अधीन था. यह अब भी दारफूर क्षेत्र में गृहयुद्ध का सामना कर रहा है. इस क्षेत्र में सूडानी सरकार द्वारा कथित नरसंहार की घटना को अंजाम दिया गया, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का सामना करना पड.ा है. |
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